Tuesday, January 22, 2013

भावनाओ का धुआं ,
पलकों की नमी का कुहासा से 
रेगिस्तान सी वीरान ज़िन्दगी 
में कुछ लिख जाऊंगा ......
जब कल सबेरे 
सूरज मेंरे आँगन में आएगा 
तुलसी के पत्ते को खाकर 
कफ़न डाल सो जाऊंगा....
उस लाचार मौसम में 
जब जज्बातों की हवा बहेकेगी 
तो तेरी पलकों में दफ़न
मैं याद बनकर छलक आऊंगा....
वो रिश्ता बह जायेगा ..
जो तेरे किस्मत था ही नहीं
मर कर तेरे जीवन का
एक अनजान किस्सा बन रह जाऊंगा...
जो तूने कभी कहा नहीं
वो तेरी आँखों से बह जायेगा
तुम जी कर भी हारोगे
मैं मर कर भी जी जाऊंगा....
अंतिम सफ़र जब निकलेगा
राम नाम सत्य न होगा
राधा कान्हा के अमर प्रेम को
जीवित मैं कर जाऊंगा......
गंगा के साहिल पर
यम को बुलवाने को यज्ञ में
घृत चन्दन की न
आत्म आहुति दे जाऊंगा ..
चाँद भी अमावस में होगा
मेरा हमसफ़र भी खोया
होगा कहीं बदलो की छांव में
मैं ज्यदा कुछ तो नहीं...
बस सबकी कुछ पल की
मुस्कराहट ले जाऊंगा ...

Tuesday, December 11, 2012

हूँ बडा असमंजस मे मैं

एक तरफ कुछ पल , कुछ खामोश साये ,
कुछ उखड़ती सांसों  की  दर्द भरि फिजाये ,
एक तरफ रंगो  मे मिलती बेरंग हवाये ,
गीतों को गते भ्रमरों  कि बेबक अदाये ,
अब भावों को लड़ते देखा है
अश्को के दरिया के साहिल पर ,
हूँ  बडा असमंजस मे मैं
खड़ा हुआ हूँ  जिन्दगी के दोराहे पर  //

सांस तो राजी है , जिन्दगी का सौदा करने को  ;
धडकन की तो जिद्द है ,उस कलि पर मरने को ;
सांस तो व्याकुल है , सपनो के अरमान सजाने को ;
धडकन तो कहती है , कुछ रस्मे  वही  निभाने को ;
तेरी यादें  , माँ  के  सपने
प्यार मिल है दोनो की ही बाहों पर
हूँ  बडा असमंजस मे मैं .............,//

जीवन मेरा गीता का सार नही ,हर जीत मे है हार मेरी ;
कैसे कोइ मेरे सपनो मे रंग भरे , हर सपने मे है बात तेरी ;
आगे बढने को उसके साथ चालु , या मर जाऊ  संग याद तेरी ;
तेरा हक कैसे देदूं  उसको , जो हो नही सकती  है मेरी ;
दुख -सुख के  पैमाने लेकर
आ पहुंचा हूँ  मयखाने  पर ..
हूँ  बडा असमंजस मे मैं ......

Friday, April 27, 2012

आखिर क्यों ?

 आखिर क्यों ?

नयनो से जो राह गुजरती है  ,
सुन ले वो बडी पथरीली  होती है ,!
फिर भी वो पगली न जाने क्यों ?
ये राह उतर दिल मे ही सोती है  ..
ज्ञात नही है मुझको आखिर क्यों ?
जेठ मे भी सवान की बदली छाई है 
आंखें तो हमेशा ही मेरी है  
न जाने नीद क्यों हुई परायी है  ?? ??

मेरे ख्याबो  के मन्जर मे ,
मेरी तेरी मुलाकते होती है ,
मेरे घर क आलिंद मे 
तेरी खुशबू क्यों फैली होती है ?
उस पगली के पायल की आहट सुन ,
न जाने क्यों ये नजर दिवानी होती है ?
न जाने अब क्यों लगत है ऐसा
हर दिन होली और रात दिवाली होती है ?
तपन छोड़ दी सुरज ने 
चन्द की चादनी से हुई सगाई है ..
आंखें तो हमेशा ही मेरी है
न जाने नीद क्यों हुई परायी है  ????

न जाने क्यों वो मुझसे आँख चुराती है
हुस्न नही , उसकी सादगी असर कर जाती है
दोनो के दिल मे है कहने को बहुत मगर ,
कहने से पहले ही नजरे झुक जाती है
न जाने वो क्यों करती है इन्कार मगर?
महेंदी से नाम मेरा ही लिखवाती है?
पर तेरी खामोशी मे हर बार
मेरी हार पर मुझ्को जीत दिलाई है ..

आंखें तो हमेशा ही मेरी है
न जाने नीद क्यों हुई परायी है  ????



Saturday, May 7, 2011

आज काफ़िर बना दिया ......!!

बहुत हुआ तेरा रहमो करम , अब तो जागी मेरी खुद्दारी है ;
कर्मभूमि  बनी अब रणभूमि,बस रणभेरी की बारी है ;
एक और खड़ा मैं तनहा अकेला ,दूजे और तेरी फौजे सारी है ;
बहुत रो चुका अपनी किस्मत पर ,खुदा अब रोने की तेरी बारी है ;
अपनी खुशियों की खातिर तुने ,मेरी ज़िन्दगी को नरक बना दिया  ;
तेरे सजदे में सर झुकाने वाले को,तुने आज काफ़िर बना दिया  .................//;

मत दे मुझको  इतने दुःख कि तेरे दिल का नासूर बन जाऊं ;
मत सता तू  मुझको इतना  , खुशियों की खातिर हैवान बन जाऊं ;
जला मत मुझको इतना कि , तेरी कायनात में आग लगा जाऊं ;
मत भर तू ज़हर मुझमे इतना कि, जानत को दोजख बना जाऊं ;
नहीं मानता तेरे फैसले , न इनको स्वीकार किया ;
तेरे सजदे में सर झुकाने वाले को,तुने आज काफ़िर बना दिया  .................//;

ज़हर भरा है मुझमे इतना  , शेषनाग कम ज़हरीला है ;
देख मेरी नफरत क रंगों से , बेरंग हुई तेरी रासलीला है ;
चोट लगी है इतनी मुझको, जिससे तेरा आसमान भी नीला है ;
मत तोर फूल मेरे आगन का , मेरा जीवन बहुत कटीला है ;
इतने जख्मो क बाद भी  , मैंने तुझसे लड़ना सीख लिया है ;
 तेरे सजदे में सर झुकाने वाले को,तुने आज काफ़िर बना दिया  .................//;

मत आ मेरी राहों में , नहीं तो बदल तेरी कहानी दूंगा ;
दुनिया को जीवन देने वाले ;तेरी दुनिया को कर शमशानी  दूंगा ;
मत इतरा अपनी किस्मत पर ,वर्ना तेरा सूरज पश्चिम से उगा दूंगा ;
छीना है तुने मुझसे मेरा प्यार , तो सुन तेरी राधा को कर अपनी दीवानी लूँगा ;
तेरी इन हरकतों ने चाँद को ' जलता सूरज बना दिया ;
तेरे सजदे में सर झुकाने वाले को,तुने आज काफ़िर बना दिया  .................//;


तुझसे डरते है वो लोग , जो कुछ खोने से डरते है ;
तू घबराता है मरने से , हम यहाँ रोज़ जीते मरते है;
तू बैठ मंदिर मस्जिद में चुचाप, हम अपनी किस्मत खुद बदलते है ;
तू डरता है दुखों से ;हम तो हर रोज तलवार पर चलते  है  ;
क्या लडूंगा मैं तुमसे ;तुने खुद को ही बेचारा बना लिया ;
तेरे सजदे में सर झुकाने वाले को,तुने आज काफ़िर बना दिया  .................//;


Saturday, April 23, 2011

डूबता सूरज मुझे लूट गया.................

सुबह उठता  हूँ नयी आस में ,
कुछ नया होगा दिन ए खास में ,
खुशियाँ खोजता हूँ इस आकाश में ,
सोचते हुए पहुँचता हूँ सुबह से शाम में ,
 पता चला डूबता सूरज मुझे लूट गया...'
गम की बरसात में जीना अब कहीं छुट गया..

हार ने इतना झकझोर दिया है ,
मुस्काते चहरे पे मायूसी छाई है /
आशाओं का बोझ उठाते उठाते ,
शिकन पेशानियत पर उभर आई है/
चारो तरफ है इतना अँधेरा कि ,
छूटी अब मेरी परछाई है /
तेरी हसीं यादों को लेकर ,
बजती अब गम की शहनाई है /
अब तो मुझको होश नहीं ,
बड़ी नशीली तेरी तन्हाई है /
पता नहीं क्यों खुशियों से नाता टूट गया....
गम की बरसात में.................................


चाँद की शीतल किरणे , 
मेरी चिता जलाती है /
मधुशाला को जाती रहे,
मेरी मंजिल अब भुलाती है /
सब कुछ पाकर तुझको खोना ,
मुझको और रुलाती है /
जवानी के इस कयामत दौर में ,
तेरी पीड़ा मुझे अब डराती है ,
अब तो सिकंदर का मुक़द्दर रूठ गया......
गम की बरसात में .............................

Wednesday, April 6, 2011

दुःख बसते है मेरे सीने में,.........

मैं अंधियारे का आशिक हूँ ,
अमावास का मैं दीवाना हूँ ,
दुःख बसते है मेरे सीने में,
गम का मैं मयखाना हूँ ,!!!

मंजिल का कोई पता नहीं,
ये राह बड़ी पथरीली है ,
सांसे लेना हो गया अब दूभर ,
ये हवा बहुत जहरीली है ,
किसी के बिन तनहा हूँ मैं ,
कानों में गूंजती मेरी आवाज अकेली है ,
थक चुका हूँ बेतुकी इस दुनिया से ,
मेरा जीना अब अबूझ पहेली है ,
भूल गया अब जाम उठाना ,
अश्को का मैं परवाना हूँ ,
दुःख बसते है मेरे......................!!!!!

चाँद की चांदनी से नफरत मुझको ,
अब तो सूरज से डर लगता है ,
दिन के उजाले में चलने पर ,
हर मोड़ पर दर्द का पत्थर मिलता है ,
मंदिर में पत्थर की मूरत पर ,
भरोसा अब  भूल सा लगता है ,
राह मिली थी जन्नत की ,
किस्मत से अब दोजख मिलता है ,
किस्मत से छुट गया हूँ पीछे मैं,
तेरे हिस्से का किस्सा मैं पुराना हूँ ,
दुःख बसते है मेरे ................................!!!!!

  
  
 

Saturday, April 2, 2011

अपनी पलकों को भीगा भीगा पाता हूँ...........:(

अंगारे बरसे थे मेरी किस्मत पर ,
अब तो खुद को तन्हा पता हूँ ,
तेरा मुझसे दूर जाने के एहसास में ,
अपनी पलकों को भीगा भीगा पाता हूँ !!!

आईने   में मुरझाई मेरी सूरत  
तेरा रूठ जाना याद दिलाता है ;
है कोई शख्स  पास मेरे जो ;
हर वक़्त तेरा इल्म करता है,
हर वक़्त सोने का मन  करता है
की सपनो में तेरा मुस्काता चहेरा पाता हूँ !!!
तेरा मुझसे .....................................!!!!!

कौन सी खता  हुई थी मुझसे  ,
जो तुम मुझसे इतना दूर हो गयी 
या खुदा तू जलता था मेरी किस्मत से 
जो मेरी ज़िन्दगी में अमावास की रात हो गयी ,
जीवन के इन हसीं किस्सों में ,
तेरा न होना सह नहीं पाता हूँ !!!!
तेरा मुझसे ..........................................!!!!!


तुम हो चाहे कितने दूर मुझसे
पर दिल से न जुदा कर पाऊंगा ,
अपनी ज़िन्दगी की हर मंजिल में 
तुझको अपने पास  ही पाऊंगा ,
तेरी बिन कितना अकेला हूँ
ये बता किसी को नहीं पाता हूँ........!!!
तेरा मुझसे...............................!!!!!